आज की सियासत  भी कोठे की तबायफ की तरह है,इशारा किसको करती है,नज़ारा कौन करता है,यानी दिखाई कुछ और देता है,और होता कुछ और है।
ये "जुमला" सत्तारूढ़ दल पर बिल्कुल सटीक बैठता है। यहां खुदगर्ज़ी,अहसान फरामोशी,मक्कारी,छद्म राष्ट्रवाद, सब कुछ उपलब्ध है,बस सत्ता मिलनी चाहिए। जिस राम के नाम यर 2 सांसद से,300 तक पहुंच गए,अपने दम पर,एक नहीं दो2 बार सरकार  बन गई,उसको भी भूल गए। वैसे अहसान फरामोशी इनके सियासी डीएनए में रचा-बसा है। जिसके कांधे पर पैर रख कर सर्वोच्च पद पर पहुंचे उसे आधुनिक काल का शहंशाह बना,मार्गदर्शक मंडल रूपी जेल में डाल दिया।
कमाल तो तब हो गया जब ये ख़बर आई कि, नव निर्मित ज़िले से भाजपा उस व्यक्ति को टिकट देने जा रही है,जिसने बाक़ायदा एक किताब का प्रकाशन कर उसमें राम का घोर अपमान किया! और भाजपा वाले तमिलनाडु के जूनियर स्टॅलिन के बयान पर कांग्रेस से सफाई मांग रहे हैं,गज़ब दोगलई है यार! ये महाशय विधायकी के साथ ही राज्य मंत्री के दर्जे को भी भोगते रहे हैं। बस इनका जातीय समीकरण,और पिछड़ों में इनकी पकड़, इनके दल को आकर्षित करती है। क्या एक ऐसी पार्टी जो भगवान राम को अपने दिल में रखने का दावा करती है,वो उनका अपमान एक विधायक़ी की सीट के लिए करवा सकती है? तो क्या नया ज़िला घोषित होते ही,भाजपा की विचारधारा भी बदल गई? क्या इनके नेताओं को लोगों की आस्था,और भावनाओं की कोई चिंता नहीं?
यदि यही कार्य किसी और दल के व्यक्ति ने किया होता तो आज सड़कों पर नंगा नाच हो रहा होता। कुछ लोगों का दबी जुबान में यह भी कहना है कि,पार्टी को सब पता था,इस किताब के बारे में,पर दलित-पिछड़ों को खुश करने और साधने के लिए इसकी मूक स्वीकृति दी गई थी। सूत्रों का दावा है कि,यह टिकट शिवराज के कोटे से दिया जाना प्रस्तावित है,जबकि प्रदेश अध्यक्ष बीड़ी शर्मा इसके सख्त खिलाफ हैं। तो क्या ये श्रवण और ओबीसी के बीएच एकाधिकार की लड़ाई है?,या फिर इन दोनों वर्गों की अदावत के चलते राम विरोधी व्यक्ति को,राम के नाम पर सफलता के शीर्ष पर पहुंचने वाली पार्टी द्वारा टिकट देना मजबूरी है? यानी एक तरफ राम भक्त,और दूसरी तरफ राम के घोर विरोधी,यदि इसके बाद भी पटेल को टिकट दिया जाता है,तो ये मान लिया जाएगा कि,राम प्रेम भाजपा के लिए सिर्फ एक जुमलेबाज़ी है,या फिर  मुख्यमंत्री, और अध्यक्ष के अहम की लड़ाई में धर्म व आध्यात्म पर गहरी चोट पहुंचाने वाली है।
स्थानीय लोगों को भी अब समझ आ चुका है कि,जब ये पार्टी अपने आराध्य की सगी नहीं हुई,जबकि उनके नाम पर ही ये फर्श से अर्श तक पहुंच पाए,तो ये कीड़े-मकोड़े जैसे इंसानों की क्या हैसियत।
अब प्रश्न यह है कि,स्थानीय लोग अपने आराध्य के प्रति किये गए अपमान पर क्या सियासी कदम उठाते हैं,और भाजपा का इस किताब पर क्या स्टेंड रहता है,क्योंकि सूत्रों का कहना है कि,भाजपा पटेल को ही अपना प्रत्त्याशी बनाने जा रही है। अगर ऐसा होता है तो ये स्थानीय जनता की परीक्षा होगी कि,वो भगवान राम के साथ हैं,या भगवान राम के अपमान पर खामोश बैठने वाले दल के साथ होंगे।