बिलासपुर। तीन दशक से भी अधिक समय के संघर्ष के बाद, धनीराम साहू को आखिरकार इंसाफ मिला। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय कोनी में उसे टाइपिस्ट के पद पर पुन: नियुक्ति का आदेश दिया। यह फैसला कॉलेज प्रबंधन की मनमानी के खिलाफ आया, जिसने 1999 में धनीराम को अचानक से टाइपिस्ट पद से हटाकर हमाल के पद पर डिमोट कर दिया था। 1988 में धनीराम साहू की नियुक्ति शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, कोनी में हमाल के पद पर हुई थी और 1990 में उनका नियमितीकरण भी हो गया था। 1997 में, जब महाविद्यालय ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया, तो धनीराम ने टाइपिस्ट की परीक्षा उत्तीर्ण की और मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद उन्हें स्टेनो-टाइपिस्ट के पद पर नियुक्त किया गया। हालांकि, 22 जुलाई 1999 को, कॉलेज प्रबंधन ने उनकी नियुक्ति को गलत ठहराते हुए उन्हें पुन: हमाल के पद पर डिमोट कर दिया। धनीराम ने इस अन्याय के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। 2014 में, उच्च न्यायालय ने धनीराम के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें 10 दिनों के भीतर टाइपिस्ट के पद पर पुन: नियुक्त करने का आदेश दिया। मगर, इस आदेश का पालन नहीं किया गया, जिससे धनीराम को न्याय पाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ी। उच्च न्यायालय ने फिर से धनीराम के पक्ष में फैसला सुनाया है और उन्हें भूतलक्षी प्रभाव से नियुक्ति के साथ-साथ समस्त लाभांश तीन महीने के भीतर प्रदान करने का आदेश दिया।