महिला आरक्षण बिल की मांग कर सोनिया ने की कांग्रेस को संजीवनी देने की कोशिश
By Atal Sandesh, 26 September, 2017, 12:13
कृष्णमोहन झा
2014 में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में शर्मनाक पराजय झेलकर केन्द्र में सत्ता से बेदखल हो चुकी कांग्रेस पार्टी विपक्षी दल के रूप में मोदी सरकार को घेरने की लगातार कोशिश करती रही है और उसकी सबसे ताजी कोशिश कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी को हाल में ही लिखी हुई उस चिट्ठी के रूप में सामने आई जिसमें संसद में महिला आरक्षण बिल को जल्द से जल्द पारित करने का अनुरोध किया गया है। सोनिया गांधी की इस चिट्ठी में प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि सन 2010 में संप्रग सरकार के कार्यकाल में राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पारित हो चुका है लेकिन तब बहुमत के अभाव में कांग्रेस पार्टी लोकसभा में इसे पारित कराने में असमर्थ रही। वर्तमान लोकसभा में भाजपा के पास बहुमत है इसलिए वर्तमान केन्द्र सरकार को इसे लोकसभा में पारित कराना चाहिए। कांग्रेसाध्यक्ष ने इस बिल को लोकसभा में पारित करवाने में सरकार को अपनी पार्टी के पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया है। गौरतलब है कि इस बिल में संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। यदि इस बिल को मोदी सरकार लोकसभा में पारित करवा देगी तो लोकसभा की 179 से अधिक सीटों पर महिलाओं के निर्वाचन का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
कांग्रेसाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में यह उल्लेख भी किया है कि पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में महिलाओं को दिए जा रहे वर्तमान आरक्षण के पीछे उनके प्रति राजीव गांधी की महत्वपूर्ण भमिका रही है। निश्चित रूप से सोनिया गांधी की चिट्ठी ने इस मुद्दे को एक बार फिर गर्मा दिया है। अब मोदी सरकार को इस विषय में अपनी स्पष्ट राय जाहिर करनी ही होगी। केन्द्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मुखिया भारतीय जनता पार्टी के पास ही इतना बहुमत है कि इस बिल को लोकसभा में पारित करवाने के लिए किसी दूसरे सहयोगी दल के समर्थन की आवश्यकता नहीं है। यही सोचकर सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को यह चिट्ठी लिखी है। वर्तमान सरकार अब तर्क देकर इस बिल को लंबित नहीं रख सकती कि उसके सहयोगी दलों के समर्थन के बिना बिल लोकसभा में पारित कराना संभव नहीं है। सोनिया गांधी ने इसे पारित करवाने में अपने दल के पूरे समर्थन का अग्रिम भरोसा दिलाकर दरअसल बड़ी चतुराई से महिला आरक्षण की गेंद भाजपा के पाले में डाल दी हैं और वर्तमान केन्द्र सरकार इसे लोकसभा में शीघ्र पारित कराने की इच्छा शक्ति प्रदर्शित नहीं करती तो कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी। केन्द्र की मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी से सोनिया गांधी यह पूछ सकती है कि जब उनकी पार्टी की सांसद इस बिल को पारित करवाए जाने के पक्ष में है तो सरकार इसमें दिलचस्पी क्यों नहीं ले रही है। यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि इस साल के आरंभ में वर्तमान लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने भी कहा था कि बिना कोई विवाद किए इस बिल को सम्मान जनक तरीके से पारित किया जाना चाहिए। वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2010 में राज्यसभा में इस बिल का पुरजोर समर्थन किया था। माक्र्सवादी नेता वृन्दा करात ने भी उस समय इस बिल का दृढ़तापूर्वक समर्थन किया था परंतु समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल आदि दलों ने इस बिल का विरोध करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी। मुलायम सिंह यादव तो महिला आरक्षण के अंदर भी आरक्षण किए जाने के पक्ष में थे जिन्होंने महिलाओं के लिए संसद में सुरक्षित की जाने वाली सीटों में दलित वर्ग और अल्प संख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित करने की वकालत की थी। अब इन दलों की लोकसभा में जो ताकत है उसे देखते हुए लोकसभा में इसे पारित करवाने में सरकार को किसी अवरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी तो इस बिल को पारित कराने के लिए लोकसभा में सरकार को पूरा समर्थन दिए जाने का भरोसा दिला चुकी हैं। ममता बैनर्जी की तृणमूल कांगे्रस द्वारा भी इस बिल का समर्थन किए जाने की संभावनाएं बलवती मानी जा सकती है।
यहां यह नि:संदेह विचारणीय बात है कि क्या वर्तमान केन्द्र सरकार इस बात का श्रेय सोनिया गांधी को देना चाहेगी कि उनकी चिट्ठी प्रधानमंत्री के पास पहुंचने के बाद ही सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश करने में दिलचस्पी दिखाई और अगर केन्द्र सरकार जल्दी ही लोकसभा में यह बिल पेश कर देती है तो कांग्रेस पार्टी यह श्रेय लेने से क्यों चूकेगी कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर ही लोकसभा में यह बिल पेश किया गया।
यह सही है कि पूरे मामले को राजनीतिक नजरिए से देखने की कोशिश भी की जाएगी परंतु अगर इस बिल को वर्तमान सरकार लोकसभा में पारित करवाने में दिलचस्पी दिखाती है तो उसके लिए श्रेय की असली हकदार तो वर्तमान सरकार ही मानी जाएगी और सवाल यहां श्रेय लेने या देने का भी नहीं है असली मुद्दा तो महिला सशक्तिकरण और समाज में उनका जायज हक दिए जाने का है और इस दिशा में मोदी सरकार ने अभी तक सराहनीय कदम उठाए हैं। केन्द्र सरकार अगर संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित किए जाने से संबंधित बिल लोकसभा में पारित करवा लेती है तो यह निसंदेह इतिहास रचने जैसा अनूठा कदम होगा। अगर मोदी सरकार ने पिछली संप्रग सरकार की कई योजनाओं को जारी रखने में संकोच नहीं किया है तो उसे महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पारित कराने में तत्परता दिखाने से नहीं हिचकना चाहिए। सरकार अगर यह फैसला कर लेती है तो नि:संदेह लोकसभा के अगले चुनावों में महिला आरक्षण के समर्थन में द्विगुणित वृद्धि करेगा।