नई दिल्ली/भोपाल। मप्र में भाजपा ने आगामी चुनाव में 51 फीसदी वोट के साथ 200 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी से किए कराए पर पानी फिरता नजर आ रहा है। भाजपा सूत्रों की मानें तो मप्र में पार्टी तीन गुटों में बंट गई है। एक गुट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का, दूसरा गुट प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का और तीसरा गुट केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का बन गया है। प्रदेश में करीब 20 साल के दौरान मप्र भाजपा में पहली बार इतनी बड़ी गुटबाजी दिख रही है। इस गुटबाजी से भाजपा आलाकमान और संघ दोनों परेशान हैं। ऐसे में डैमेट कंट्रोल करने के लिए आलाकमान ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश में जिम्मेदारी सौंप दी है।  
जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले डेढ़ दशक से मुख्यमंत्री बने रहने के बाद जब भाजपा 2018 का विधानसभा चुनाव हारी तो उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। किसी तरह कांग्रेस की सरकार गिर जाने की वजह से वे दोबारा तो मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन उनकी आगे की राह अब आसान नहीं होने वाली है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा उन्हें चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री सिंधिया अपने समर्थकों को इस बार भी टिकट दिलाने के लिए अड़े हुए हैं। ऐसे में पार्टी तीन खेमों में बंट गई है। खेमेबाजी से हो रहे डैमेज को कंट्रोल करने के लिए आलाकमान ने तोमर को मोर्चे पर सक्रिय कर दिया है। ताकि आने वाले चुनाव से पहले हालात ठीक कर लिए जाएं ताकि चुनाव में कोई दिक्कत न हो पाए।
चुनाव की तैयारियों के बीच भाजपा का एक खेमा नाराज दिख रहा है। दरअसल सिंधिया समर्थक विधायक जो ढाई साल पहले उपचुनाव में हार गए थे, उनका टिकट काटने के फार्मूले से ये खेमा खुश नहीं है। सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ सरकार का तख्तापलट कर शिवराज सरकार की वापसी में अहम भूमिका निभाने वाले अपने उन सभी समर्थक विधायकों के लिए 2023 के चुनाव में टिकट चाहते हैं, जो मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर उनके साथ भाजपा में आए थे। दरअसल प्रदेश में सत्तापक्ष की वीथिकाएं उस समय एकदम से गरमा गई जब पिछले दिनों राजधानी में चुनावी तैयारियों का खाका खींचने के लिए आयोजित भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सिंधिया की अनुपस्थित दिखे। इससे सिंधिया की कथित नाराजगी की अटकलों को और बल मिला है। सिंधिया खेमे ने अपनी विधायकी व मंत्री पद गंवाने को प्रदेश में भाजपा सरकार की पुनस्र्थाापना के लिए अपनी कुर्बानी के रूप में बताया था। भले ही इसके बाद शिवराज सरकार ने इन सभी पराजित विधायकों को निगम-बोडों का अध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा देते हुए पार्टी व सरकार के प्रति उनके योगदान का प्रतिसाद देने की कोशिश की, लेकिन इन सभी पराजित विधायकों का मानना है कि निगम बोर्ड का अध्यक्ष बनाने मात्र से 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट पर उनका दावा खत्म नहीं हो जाता है।
भाजपा सूत्रों की मानें तो सीएम शिवराज की सियासत के लिए सबसे बड़ा खतरा का कारण बने हैं प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा। इस समय वीडी शर्मा और शिवराज सिंह चौहान के बीच दूरियां बढ़ी हुई है। खांटी संघी होने के कारण भाजपा का झुकाव भी वीडी शर्मा की और ज्यादा दिखाई दे रहा है।  सूत्रों के मुताबिक वीडी शर्मा के साथ कई दर्जन ऐसे नेता हैं जो शिवराज सिंह से खुश नहीं हैं। ऐसे में भाजपा की कोशिश होगी कि उन दोनों नेताओं की आपसी तनाव को खत्म कर कुछ ऐसा करने की कोशिश की जाय ताकि पूरे प्रदेश में एक ऐसा सन्देश जाए कि वहां सब कुछ ठीक चल रहा है।
हालांकि कर्नाटक विधान सभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस इस समय उत्साह से भरी हुई है। उनके नेता भी आगामी चुनाव को जीतने की  कोशिशों में लग चुके हैं। चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्भाल रहे शिवराज सिंह चौहान के साथ सत्ता विरोधी लहर का भी खतरा बना रहेगा। ऐसे में आगामी चुनाव में अगर भाजपा को मप्र में एक बार फिर सरकार बनानी है तो उसे हर हाल में आपसी झगड़े सुलझाने होंगे वर्ना कर्नाटक की तरह मध्यप्रदेश भी उसके हाथों से जाता रहेगा।