छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में रहने वाले एक परिवार सांसारिक मोहमाया को छोड़कर डाकलिया परिवार के सभी छह सदस्यों ने संयम के मार्ग पर चलने का फैसला लिया। शहर के जैन बगीचे में आयोजित दीक्षा समारोह में परिवार ने करोड़ों की दौलत से मुंह फेर अध्यात्म के रास्ते पर चलने का फैसला किया है। रविवार से बगीचे में शुरू हुए पांच दिवसीय दीक्षा समारोह में डाकलिया परिवार ने दीक्षा ग्रहण की। डाकलिया परिवार के भूपेंद्र डाकलिया,उनकी पत्नी सपना डाकलिया, बेटी महिमा डाकलिया, मुक्ता डाकलिया, बेटे देवेंद्र डाकलिया और हर्षित डाकलिया ने संयम और अध्यात्म के मार्ग पर चलने की दीक्षा ली। इस दीक्षा समारोह में बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। परिवार के सदस्यों ने कहा कि हम किसी मजबूरी में नहीं ले रहे, बल्कि अपनी इच्छा से अध्यात्म के रास्ते को अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि दीक्षा का मार्ग सत्य और ईश्वर का मार्ग है, इसलिए उन्होंने इस मार्ग पर चलने का फैसला किया है।

श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वरजी की मौजूदगी में दीक्षा लेने के बाद ये सभी लोग साधु-साध्वी बनकर समाज में धर्म का प्रचार करेंगे। जैन धर्म में दीक्षा लेने के बाद सभी तरह की सुख-सुविधाओं का त्याग करना होता है। जैन धर्म में इसे ‘चरित्र’ या ‘महानिभिश्रमण’ भी कहते हैं। पांच दिनों तक चलने वाली इस प्रक्रिया का आखिरी चरण पूरा करने के लिए सभी साधुओं और साध्वियों को अपने बाल अपने ही हाथों से नोचकर सिर से अलग करने पड़ते हैं।