उज्जैन. भारत के अलग-अलग हिस्सों में होली के कई रूप देखने को मिलते हैं। होली का ऐसा ही एक अनोखा रूप है बरसाने की लट्‌ठमार होली (Lathmar Holi of Barsana)। होली से जुड़ी ये परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में बहुत प्रसिद्ध है।

इसे देखने के लिए हजारों सैलानी हर साल ब्रज धाम आते हैं। ये परंपरा कैसे शुरू हुई और कैसे इसने इतना बड़ा रूप ले लिया। इससे जुड़ी कई रोचक बातें हैं। आज हम आपको इस परंपरा से जुड़ी खास ऐसी ही खास बातें बता रहे हैं.

कैसे शुरू हुई लट्‌ठमार होली की परंपरा?
बरसाने की लट्‌ठमार होली की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। शैशव काल के दौरान जब भगवान श्रीकृष्ण नंद गांव में रहते थे। तभी उनकी मुलाकात बरसाने की राधा से हुई और दोनों में प्रेम हो गया। होली के पहले भगवान श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ बरसाने में होली खेलने जाते थे। जब श्रीकृष्ण राधा सहित अन्य गोपियों को रंग लगाते थे तो गोपियां उन्हें डंडे से पीटने का अभिनय करती थीं। श्रीकृष्ण, राधा और अन्य सभी गोप-गोपियों को इसमें बड़ा आनंद आता था। इस तरह लट्ठमार होली खेलने की परंपरा शुरू हुई जो आज भी जारी है।

कैसे पूरी की जाती है ये परंपरा?
जिस दिन बरसाने में लट्‌ठमार होली खेली जाती है, उस दिन यहां की गलियों में पैर रखने तक की जगह नही होती क्योंकि लाखों की संख्या में सैलानी बरसाने पहुँच जाते हैं। लट्ठमार होली हर कोई नही खेल सकता हैं। इसमें नंदगांव के पुरुष भाग लेते हैं जिन्हें हुरियारे कहा जाता हैं। तो दूसरी ओर बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं जिन्हें हुरियारने कहा जाता हैं। बरसाने की हुरियारने नंदगांव के हुरियारों पर लट्ठ से वार करती हैं जबकि नंदगांव के हुरियारे स्वयं को लट्ठ के वार से बचाते हुए उन पर रंग डालने का प्रयास करते हैं।

होली खेलने के लिए दिया जाता है निमंत्रण
- होली खेलने से पहले बरसाने की हुरियारने नंदगांव जाती हैं और वहां के गोस्वामी समाज को गुलाल भेंट करती हैं और होली खेलने का निमंत्रण दिया जाता हैं। इसे फाग आमंत्रण कहा जाता हैं।
- इसके बाद सभी हुरियारने बरसाने गाँव में वापस आ जाती हैं और वहां के श्रीजी मंदिर में इसकी सूचना देती हैं। फिर शाम के समय नंदगांव के हुरियारे भी बरसना के लोगों को नंदगांव में होली खेलने का निमंत्रण देते हैं और इसे भी स्वीकार कर लिया जाता हैं।
- इसके अगले दिन नंदगांव के हुरियारे अपने हाथों में रंग व ढाल लिए बरसाने गाँव पहुँच जाते हैं। उन्हें गोपियों के लठ से बचते हुए और उन पर रंग लगाते हुए, बरसाने के श्रीजी मंदिर के ऊपर ध्वजा लगाना होता हैं।
- बरसाने की हुरियारने लठ लिए उन्हें रोकने का प्रयास करती हैं। इस प्रकार पूरे बरसाने में यही चलता हैं और जगह-जगह लठ चलाये जाने और उसके ढाल पर पड़ने की आवाज आती रहती हैं। फिर कुछ इसी प्रकार की होली अगले दिन नंदगांव में खेली जाती हैं जिसमें नंदगाँव की महिलाएं और बरसाने के पुरुष भाग लेते हैं।