यदि आप शेयरों की इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते हैं तो कई बार नुकसान भी उठाते होंगे। लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर इस तरह का रिस्क कम कर सकते हैं। मार्केट रिसर्च और सटीक ट्रेडिंग स्ट्रैट्जी का अपनाना इनमें शामिल है। सटीक ट्रेडिंग स्ट्रैट्जी का मतलब है स्टॉक होल्ड करने की अपनी क्षमता के हिसाब से शेयरों का चयन करना। यदि आप लंबे समय तक होल्ड नहीं कर सकते, तो ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले शेयर खरीदने से बचें। इसके अलावा ज्यादा लालच या भय से भी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

इंट्रा-डे ट्रेडिंग और इक्विटी निवेश के बीच अंतर 
इंट्रा-डे ट्रेंडिंग और शेयर बाजार में निवेश में बड़ा फर्क होता है। आमतौर पर निवेश उसे कहते हैं, जहां आप शेयरों में लंबी अवधि के लिए पैसा लगाते हैं। ये निवेश कई साल तक चलता है। लेकिन इंट्रा-डे ट्रेडिंग में सबकुछ एक दिन में होता है। कुछ मिनटों या घंटों के खेल में आप मुनाफा कमाते हैं या भारी नुकसान उठाते हैं। इंट्रा-डे ट्रेडर शॉर्ट टर्म में शेयर में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाते हैं, जबकि निवेशक मजबूत फंडामेंटल्स वाली कंपनियों के शेयर में पैसा लगाकर लंबी अवधि में रिटर्न हासिल करते हैं।

अक्सर लोग कहते हैं कि बाजार में तेजी के बावजूद वे नुकसान में हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसें- 

1. अधिकतर निवेशक बाजार का रुझान बदलने के कारण नहीं समझ पाते और गलत शेयर खरीद लेते हैं।
2. निवेशक रिस्क मैनेजमेंट नहीं कर पाते। ‘कट लॉस’ और ‘बुक-प्रॉफिट’ की बारीकियों से अनजान होते हैं।
3. शेयर ट्रेडिंग की लागत के मुकाबले रिटर्न कम होता है। अक्सर लागत आंकने में निवेशक विफल रहते हैं।
4. बाजार चढ़ने पर लालच में शेयर खरीदना और बाजार गिरने पर घबराहट में शेयर बेचना घाटे का सौदा होता है।