• आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र के दूसरे अध्याय के आठवें श्लोक के जरिए तीन स्थितियों का वर्णन किया है | आचार्य ने इन तीनों स्थितियों को ही व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी बताया है | कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्, कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम् | इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति, जवानी और दूसरों के घर में शरण लेना, ये तीनों ही स्थितियां व्यक्ति के लिए बेहद कष्टकारी हैं |
  • आचार्य ने इस श्लोक में पहला जिक्र एक मूर्ख व्यक्ति का किया है, क्योंकि एक मूर्ख व्यक्ति कभी सही और गलत में फर्क नहीं कर पाता, इस कारण वो हमेशा परेशान ही रहता है | उसके सामने कोई भी परिस्थिति होती है, तो वो उसे मैनेज नहीं कर पाता और दूसरों को इसका दोषी ठहराता है और स्वयं कुंठित रहता है |
  • दूसरा जिक्र है जवानी का, जवानी में व्यक्ति इसलिए परेशान होता है, क्योंकि इस बीच उसके मन में ढेरों इच्छाएं पैदा होती हैं | ऐसे में वो कभी संतुष्ट नहीं होता और कुछ न कुछ प्राप्त करने के लिए मन ही मन परेशान होता रहता है | इस कारण उसकी जवानी कष्ट में ही गुजरती है | प्रसन्न रहने के लिए सब्र और संतुष्टि बहुत जरूरी है |
  • मूर्खता और जवानी से भी कहीं ज्यादा कष्टकारी है किसी अन्य के घर में शरण लेना | जब आप किसी के घर में रहते हैं तो पूरी तरह से उस व्यक्ति पर आश्रित रहते हैं | उसके हिसाब से ही हमें सारे कार्य करने पड़ते हैं | ऐसी स्थिति किसी के लिए भी बेहद कष्टकारी होती है |